चुनार के बलुआ पत्थर भौगोलिक संकेतक (GI) का दर्जा
चुनार के बलुआ पत्थरों को राजस्थान के मकराना पत्थर के बाद दूसरा जी आई (G.I) टैग मिला | चुनार के पत्थरों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है इससे उम्मीद है कि आने वाले समय में पत्थरों की डिमांड और बढ़ेगी |
जीआई प्रमाणपत्र (संख्या -339) के अनुसार, मानव कल्याण संघ द्वारा सुगमता से हस्तशिल्प और कारीगरों के संघ (Consortium of Handicrafts and Artisans Society, facilitated) के नाम पर टैग जारी किया गया है। जीआई प्रमाणन को भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री, चेन्नई में 25 जुलाई 2016 को लागू किया गया था, और प्रमाणपत्र 4 मार्च, 2019 को जारी किया गया था।
विगत हो कि चुनार के पत्थरों को भारत में हर जगह यूज किए गए हैं सम्राट अशोक के काल से पत्थरों का उपयोग किले से लेकर महत्वपूर्ण भवनों ,मूर्तियों के निर्माण में यूज़ किया आता जा रहा जा रहा है
चुनार के बलुआ पत्थरों का यूज राष्ट्रपति भवन बनाने में भी किया गया है
चुनार के बलुआ पत्थरों को का उपयोग इसलिए क्या जाता है क्योंकि यह पत्थर बहुत ही मुलायम होते हैं और इन्हें आसानी से काटा जा सकता है
चुनार के बलुआ पत्थरों को का उपयोग इसलिए क्या जाता है क्योंकि यह पत्थर बहुत ही मुलायम होते हैं और इन्हें आसानी से काटा जा सकता है
चर्चा में क्यों?
सरकार ने इस साल अब तक 14 उत्पादों को
भौगोलिक संकेतक (GI) प्रदान किया है जिनमें हिमाचल का काला जीरा, छत्तीसगढ़
का जीराफूल और ओडिशा की कंधमाल हल्दी जैसे उत्पाद शामिल हैं।
प्रमुख बिंदु
- उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade-DPIIT) के आँकड़ों के अनुसार, कर्नाटक की कुर्ग अरेबिका कॉफी, केरल के वायनाड की रोबस्टा कॉफी, आंध्र प्रदेश की अराकू वैली अरेबिका, कर्नाटक की सिरसी सुपारी और हिमाचल के चूली तेल को भी जीआई टैग प्रदान किया गया हैं।
- खास भौगोलिक पहचान मिलने से इन उत्पादों के उत्पादकों को अच्छी कीमत मिलती है और साथ ही अन्य उत्पादक उस नाम का दुरुपयोग कर अपने सामान की मार्केटिंग भी नहीं कर सकते हैं।
क्या है जीआई टैग?
- भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication) का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिये किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है।
- इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है।
- इस तरह का संबोधन उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता का आश्वासन देता है।
- जीआई टैग को औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिये पेरिस कन्वेंशन (Paris Convention for the Protection of Industrial Property) के तहत बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) के एक घटक के रूप में शामिल किया गया है।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर GI का विनियमन विश्व व्यापार संगठन (WTO) के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं (Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights-TRIPS) पर समझौते के तहत किया जाता है।
- वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर यह कार्य ‘वस्तुओं का भौगोलिक सूचक’ (पंजीकरण और सरंक्षण) अधिनियम, 1999 (Geographical Indications of goods ‘Registration and Protection’ act, 1999) के तहत किया जाता है, जो सितंबर 2003 से लागू हुआ।
- वर्ष 2004 में ‘दार्जिलिंग टी’ जीआई टैग प्राप्त करने वाला पहला भारतीय उत्पाद है। भौगोलिक संकेतक का पंजीकरण 10 वर्ष के लिये मान्य होता है।
- महाबलेश्वर स्ट्रॉबेरी, जयपुर की ब्लू पॉटरी, बनारसी साड़ी और तिरुपति के लड्डू तथा मध्य प्रदेश के झाबुआ का कड़कनाथ मुर्गा सहित कई उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है।
- जीआई टैग किसी उत्पाद की गुणवत्ता और उसकी अलग पहचान का सबूत है। कांगड़ा की पेंटिंग, नागपुर का संतरा और कश्मीर का पश्मीना भी जीआई पहचान वाले उत्पाद हैं।
Post a Comment