चुनार की ऐतिहासिक एवं आध्यात्मिक नगरी बहुत वर्षो पहले से ही पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है और
यही कारण है की लगभग 1965 से ही चुनारगढ़ का किला हिन्दी तथा भोजपुरी
फ़िल्म जगत का केंद्र रहा है |
अबतक चुनार किले तथा सिद्धनाथ दरी जैसे अलग-अलग खूबसूरत स्थानों पर अनेकों हिन्दी तथा भोजपुरी फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है जिनके नाम मुख्यत इस प्रकार है
अबतक चुनार किले तथा सिद्धनाथ दरी जैसे अलग-अलग खूबसूरत स्थानों पर अनेकों हिन्दी तथा भोजपुरी फिल्मों की शूटिंग हो चुकी है जिनके नाम मुख्यत इस प्रकार है
- द एडवांटर ऑफ रॉबिन हुड# [The Advanture Of Robin Hood]
- गौरी -अभिनेता..संजीव कुमार ,सुनील दत्त [ Gauri ]
- गंगा किनारे मोरा गांव [ Ganga Kinare Mera Gaav ]
- बन्टी और बबली [ Bunty and Bubli ]
- गैंग ऑफ बासेपुर [ Ganga Of Wasseypur ] | Check
- पेटा [Petta]
- इत्तु सी बात [ Ittu Si Baat ]
- भूल चूक माफ़ [Bhool Chuk Maaf]
चुनार में शूट हुए प्रमुख वेब सीरीज |
- मिर्जापुर वेब सीरीज | [ Mirzapur Web Series ]
अभी हाल-फिलहाल में साउथ सुपर स्टार रजनीकांत की मूवी #पेटा
की शूटिंग भी चुनार के कई प्राचीन इमारतों व भवनों पर की गई थी .
इसके साथ -साथ चुनार एक समय मे व्यपार का भी केंद्र हुआ करता था चुनार का अपने देश के सबसे बड़े व्यवसायिक नगर कोलकाता से सीधा संपर्क था वर्तमान सोनभद्र के वनों तथा नदियों से उत्पादित वस्तुएं जैसे शहद,चिरौंजी,गोरोचन,महुआ,चमड़ा,रेशम,लाह,बास, कत्था यहा तक की कोयला भी काशी ,चुनार और अहरौरा की बाजारों में बिक्री के लिये ले जाया करती थी
वहा से यह वस्तुए गंगा मार्ग से कोलकाता जाती थी और कोलकाता से भी तमाम वस्तुए यहा आती रहती थी यहा के व्यापारी वहा और वहा के व्यापारी यहा आते- जाते रहते थे बंगाल के पर्यटक तो भारी संख्या में यहा अब भी लगभग 25 से 30 वर्ष पहले तक जाड़े के दिनों में अपने स्वास्थ्य लाभ के लिए यहा आया करते थे और यहा के मंदिरों और देवी देवताओं से इनका निकट का नाता जुड़ गया था और साहित्यकारों की तो चुनार की धरती जन्मभूमि और कर्मभूमि दोनों रही है ।
हर प्रकार से समृद होने के बाद भी आजतक चुनार के किले और यहा के ऐतिहासिक धरोहरों व इमारतों पर अलग से कभी भी किसी भी सरकार के द्वारा ऐसा कोई प्रयत्न और कार्य नही कराया गया जिससे की चुनार के खण्डहर होते इन ऐतिहासिक धरोहरो को बचाया जा सके वर्षो से सिर्फ अखबारों में विज्ञापन दिखाया जाता है
कि चुनार किले के सरक्षंण हेतु इतने करोड़ो रूपये का बजट पास हुआ चुनार किले पर 100 फिट का तिरंगा झण्डा लगेगा तो कभी स्ट्रीट लाईटे लगेगी लेकिन आज तक धरातल पर ऐसा कुछ भी नही नजर आता |
इसके साथ -साथ चुनार एक समय मे व्यपार का भी केंद्र हुआ करता था चुनार का अपने देश के सबसे बड़े व्यवसायिक नगर कोलकाता से सीधा संपर्क था वर्तमान सोनभद्र के वनों तथा नदियों से उत्पादित वस्तुएं जैसे शहद,चिरौंजी,गोरोचन,महुआ,चमड़ा,रेशम,लाह,बास, कत्था यहा तक की कोयला भी काशी ,चुनार और अहरौरा की बाजारों में बिक्री के लिये ले जाया करती थी
वहा से यह वस्तुए गंगा मार्ग से कोलकाता जाती थी और कोलकाता से भी तमाम वस्तुए यहा आती रहती थी यहा के व्यापारी वहा और वहा के व्यापारी यहा आते- जाते रहते थे बंगाल के पर्यटक तो भारी संख्या में यहा अब भी लगभग 25 से 30 वर्ष पहले तक जाड़े के दिनों में अपने स्वास्थ्य लाभ के लिए यहा आया करते थे और यहा के मंदिरों और देवी देवताओं से इनका निकट का नाता जुड़ गया था और साहित्यकारों की तो चुनार की धरती जन्मभूमि और कर्मभूमि दोनों रही है ।
हर प्रकार से समृद होने के बाद भी आजतक चुनार के किले और यहा के ऐतिहासिक धरोहरों व इमारतों पर अलग से कभी भी किसी भी सरकार के द्वारा ऐसा कोई प्रयत्न और कार्य नही कराया गया जिससे की चुनार के खण्डहर होते इन ऐतिहासिक धरोहरो को बचाया जा सके वर्षो से सिर्फ अखबारों में विज्ञापन दिखाया जाता है
कि चुनार किले के सरक्षंण हेतु इतने करोड़ो रूपये का बजट पास हुआ चुनार किले पर 100 फिट का तिरंगा झण्डा लगेगा तो कभी स्ट्रीट लाईटे लगेगी लेकिन आज तक धरातल पर ऐसा कुछ भी नही नजर आता |
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