बहुत इंतज़ार के बाद काफी खोज खबर लेने बाद इस जगह का हमें पता चला और हम भी निकल पड़े इस रहस्यमय और तिलस्मी मंदिर को देखने मंदिर बाहर से ऊँची चाहारदीवारी से घिरा है बाहर से मंदिर को देखा नहीं जा सकता है इसे देखने के लिए चाहारदीवारी के भीतर जाना पड़ता है मंदिर केवल सुबह पुजारी के द्वारा पूजा के लिए खुलता है और फिर बंद कर दिया जाता है l
इसके आलावा मंदिर परिसर मे एक कुंआ भी है जो अब बड़े बड़े पत्थर के टुकड़ों ढँक दिया गया है पूरा मंदिर परिसर बड़े बड़े पत्थर के टुकड़ों से भरा पड़ा है जो देखने मे बेहद प्राचीन और रहस्यमय लग रहे थे एक पत्थर पर कोई मंत्र भी खुदा था जिसे हम पढ़ नहीं पाये मंदिर परिसर मे बेल के पेड़ भी है शायद हो सकता है इसी कारण से इस मंदिर का नाम बेलबीर है l
खैर अभी मुख्य मंदिर को देखना बाकि था हमारा रुख मुख्य मंदिर कि तरफ हुआ जैसे है हम मंदिर के पास गए एक अजीब चीज दिखी हम हैरान रहा गए मंदिर के मुख्य द्वार पर झरोखे मे एक बिल्ली बैठी थी उसे देखते ही ऐसा लगा जैसे वह उस मंदिर कि रखवाली कर रही है हम उसे नजरअंदाज करते हुए मुख्य मन्दिर परिसर मे दाखिल हुए मन्दिर के भीतर हमें भगवान भोले नाथ के बेलबीर स्वरूप का दर्शन हुआ l
यह एक बड़ा शिवलिंग है बेहद पुरातन (पुराना )शिवलिंग है मंदिर के गर्भगृह से एक हल्की लेकिन बेहद मनमोहक सुगंध आ रही जो जो कि हैरानी भरा था
अदभुत इसके बाद हमे मन्दिर से बाहर आये और मन्दिर को चारों तरफ से देखा तभी हमारी निगाहे एक ऐसे दृश्य को देखा हमें अपने आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था मन्दिर के ठिक पीछे सुरंग का खुला हुआ मुहाना था सबसे रहस्यमय यही था इस सुरंग के बारे मे इतना ही पता चल सका यह सुरंग चुनारगढ़ के ऐतिहासिक किले मे जाती है l
बहुत लम्बी तलाश के बाद किसी तरह यहाँ हम पहुंचे और हमने बहुत प्रयास किया लेकिन इस मंदिर के इतिहास के विषय मे हमें कोई जानकारी हासिल नहीं हो पायी आज इस मन्दिर नाम भी शायद चुनारगढ़ के कुछ पुराने निवासियों को ही मालूम है आवश्यकता है कि ऐसे पुरातन स्थानों पर गहन शोध करके इसके इतिहास को दुनिया के सामने लाया जाय जिससे लोगों को भारत के महान सांस्कृतिक ऐतिहासिक वैभव का ज्ञान होगा l
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