अत्यंत कम उम्र में जलालुदीन मुहम्मद अकबर के राज तख्त पर बैठने के कारण
दिल्ली में कुछ दिनों तक अराजकता की स्तिथि रही ।
अक्सर वहा डाके पड़ा करते थे इन डाकुओ से अपनी वीरता और सूझ बूझ के चलते लाल खां ओहदेदार ने इन पर पूरी तरह काबू पाया था ।
इस पर बादशाह बहुत खुश हुआ लाल खां ने इनाम स्वरूप दिल्ली तख्त के अंतर्गत आने वाले शहर में अपने नाम की दरवाजे स्थापित करने की प्राथना की अतः लाल खां के गुजारिश पर दिल्ली शहर तथा अन्य स्थानों पर लाल दरवाजे बनवाये गए चुनार में भी चौक से लगभग 50 कदम दूरी पर लाल दरवाजा बनवाया गया
यह दरवाजा बहुत सालो तक खड़ा रहा मगर अब लगभग 15 से 20 वर्षो में यह ऐतिहासिक दरवाजा टूट फुट गया और कुछ लोग द्वारा इस पर आगे पीछे से अवैध रूप से कब्जा जमा लिया गया और जो कुछ भी इसके अवशेष बचे थे उसे उठा लिया गया या फिर कबाड़ी के भाव बेच दिया गया लेकिन अब भी इसके अवशेष देखने पर इसके भव्यता का आभास होता है ।
अक्सर वहा डाके पड़ा करते थे इन डाकुओ से अपनी वीरता और सूझ बूझ के चलते लाल खां ओहदेदार ने इन पर पूरी तरह काबू पाया था ।
इस पर बादशाह बहुत खुश हुआ लाल खां ने इनाम स्वरूप दिल्ली तख्त के अंतर्गत आने वाले शहर में अपने नाम की दरवाजे स्थापित करने की प्राथना की अतः लाल खां के गुजारिश पर दिल्ली शहर तथा अन्य स्थानों पर लाल दरवाजे बनवाये गए चुनार में भी चौक से लगभग 50 कदम दूरी पर लाल दरवाजा बनवाया गया
यह दरवाजा बहुत सालो तक खड़ा रहा मगर अब लगभग 15 से 20 वर्षो में यह ऐतिहासिक दरवाजा टूट फुट गया और कुछ लोग द्वारा इस पर आगे पीछे से अवैध रूप से कब्जा जमा लिया गया और जो कुछ भी इसके अवशेष बचे थे उसे उठा लिया गया या फिर कबाड़ी के भाव बेच दिया गया लेकिन अब भी इसके अवशेष देखने पर इसके भव्यता का आभास होता है ।
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