बहुत समय पहले चुनार में
कुश्ती के कई अखाड़े हुआ करते थे जिसमें उस्ताद लोग कुश्ती के दावँ पेच
सिखाया करते थे वर्षाकाल के प्रारम्भ होते
ही कुश्ती के अखाड़ो में दण्ड बैठक करने वालो और दाव पेच सीखने वालो की भीड़
लगने लगती थी
इन अखाड़ो में जाने वाले रेख भीगते किशोर एव नवजवान दोनो हुआ करते थे नागपंचमी से कुश्ती दंगलों का सिलसिला शुरू हो जाता था अब भी दंगलों के आयोजन का शुभारंभ सभी स्थानों पर नागपंचमी से ही होता है पुरानी परम्परा अब भी कुछ स्थानों एवं क्षेत्रो में कायम है ।
यहा के अखाड़ो में गुरुद्वारा के पास नरोत्तम बाबा का अखाड़ा बहुत प्रशिद्ध था यहा से अपने समय मे दर्जनों पहलवान निकले और दंगल की दुनिया मे बहुत नाम कमाया इन दिनों कुश्ती का शौक लगभग सभी परिवारों में रहता था और लोग देह बनाने एवं दण्ड-बैठक के लिए नियमित भी जाते थे गंगेश्वर नाथ में छोटक गिरी बाबा थे ये दुबले पतले थे किंतु दांव में बहुत अच्छे थे अपने से कई गुना भारी शरीर वाले पहलवानो को पलभर में चित कर देते थे ।
नार शहीद के पास विपत खलीफा का का अखाड़ा था यह एक मुसलमान थे लेकिन सभी सम्प्रदायों के लोग यहा के शिष्य थे विपत खलीफा का शरीर लम्बा -चौड़ा था और एकदम गोरे रंग के थे अपने समय मे इनके शिष्यो में घुनाराम यादव और विश्वनाथ पटवा बहुत ही अच्छे और नामी पहलवान थे
इसी क्रम में सहायक खलीफा के अखाड़े को भी खूब प्रशिदी मिली दोनो धर्मो के लोग काफी संख्या में यहा दांव पेंच सीखने और शरीर बनाने जाते थे लम्बे -तगड़े और अगर की तरह घुना राम यादव ,गोरे हुसैना और विश्वनाथ सेठ बहुत अच्छे थे
सद्दुपुर मोहाना में सोनी महाराज का अखाड़ा इनके यहा उस क्षेत्र के कुशवाहा और यादव लोग अधिक संख्या में जाते थे सोनी महाराज के दाव बताये कई लड़के अपने समय मे अच्छा प्रभाव जमाये हुए थे ।
बालू घाट में बुलाकी खलीफा का अखाड़ा था इनका नाम दांव में बहुत था जिन लोगो को ये दाव बता देते थे और शिष्य उसी मुस्तैदी से सिख लेते थे तो वो पहलवान कभी दंगल हारते न थे गंगा तट पर इनका अखाड़ा होने के कारण निषाद परिवार के लड़के अधिक जाते थे ये स्वयं भी निषाद थे इनके यहा से मुहर्रम में ताजिया भी उठता था और अखाड़ो में भी बहुत उत्साह से पटा, बनेनी खेलने और दूसरे करतब दिखाने जाते थे इनके पुत्र बेचन खलीफा भी अखाड़े का संचालन किया करते थे
नगर के मोहाना क्षेत्र में सूरज खलीफा का नाम बहुत प्रशिद्ध था ये कुशवाहा थे इनके यहा कुशवाहा और हरिजन अधिक संख्या में जाते थे इनके शिष्य कई बड़े दंगलों में नामी पहलवानो को चित कर चुके थे इनमे से चुनार में अधिकांश अखाड़े अब नही है ये सारा खिस्सा सन,1901-1955-60 तक का है ।
चुनारगढ़ कुश्ती |
इन अखाड़ो में जाने वाले रेख भीगते किशोर एव नवजवान दोनो हुआ करते थे नागपंचमी से कुश्ती दंगलों का सिलसिला शुरू हो जाता था अब भी दंगलों के आयोजन का शुभारंभ सभी स्थानों पर नागपंचमी से ही होता है पुरानी परम्परा अब भी कुछ स्थानों एवं क्षेत्रो में कायम है ।
यहा के अखाड़ो में गुरुद्वारा के पास नरोत्तम बाबा का अखाड़ा बहुत प्रशिद्ध था यहा से अपने समय मे दर्जनों पहलवान निकले और दंगल की दुनिया मे बहुत नाम कमाया इन दिनों कुश्ती का शौक लगभग सभी परिवारों में रहता था और लोग देह बनाने एवं दण्ड-बैठक के लिए नियमित भी जाते थे गंगेश्वर नाथ में छोटक गिरी बाबा थे ये दुबले पतले थे किंतु दांव में बहुत अच्छे थे अपने से कई गुना भारी शरीर वाले पहलवानो को पलभर में चित कर देते थे ।
नार शहीद के पास विपत खलीफा का का अखाड़ा था यह एक मुसलमान थे लेकिन सभी सम्प्रदायों के लोग यहा के शिष्य थे विपत खलीफा का शरीर लम्बा -चौड़ा था और एकदम गोरे रंग के थे अपने समय मे इनके शिष्यो में घुनाराम यादव और विश्वनाथ पटवा बहुत ही अच्छे और नामी पहलवान थे
इसी क्रम में सहायक खलीफा के अखाड़े को भी खूब प्रशिदी मिली दोनो धर्मो के लोग काफी संख्या में यहा दांव पेंच सीखने और शरीर बनाने जाते थे लम्बे -तगड़े और अगर की तरह घुना राम यादव ,गोरे हुसैना और विश्वनाथ सेठ बहुत अच्छे थे
सद्दुपुर मोहाना में सोनी महाराज का अखाड़ा इनके यहा उस क्षेत्र के कुशवाहा और यादव लोग अधिक संख्या में जाते थे सोनी महाराज के दाव बताये कई लड़के अपने समय मे अच्छा प्रभाव जमाये हुए थे ।
बालू घाट में बुलाकी खलीफा का अखाड़ा था इनका नाम दांव में बहुत था जिन लोगो को ये दाव बता देते थे और शिष्य उसी मुस्तैदी से सिख लेते थे तो वो पहलवान कभी दंगल हारते न थे गंगा तट पर इनका अखाड़ा होने के कारण निषाद परिवार के लड़के अधिक जाते थे ये स्वयं भी निषाद थे इनके यहा से मुहर्रम में ताजिया भी उठता था और अखाड़ो में भी बहुत उत्साह से पटा, बनेनी खेलने और दूसरे करतब दिखाने जाते थे इनके पुत्र बेचन खलीफा भी अखाड़े का संचालन किया करते थे
नगर के मोहाना क्षेत्र में सूरज खलीफा का नाम बहुत प्रशिद्ध था ये कुशवाहा थे इनके यहा कुशवाहा और हरिजन अधिक संख्या में जाते थे इनके शिष्य कई बड़े दंगलों में नामी पहलवानो को चित कर चुके थे इनमे से चुनार में अधिकांश अखाड़े अब नही है ये सारा खिस्सा सन,1901-1955-60 तक का है ।
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