चुनार के ऐतिहासिक श्री राघवेंद्र रामलीला का शुरुवात होने जा रहा है इससे
पहले हम आपको इस रामलीला के इतिहास के बारे में कुछ जानकारी देना चाहते है।
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काशी से आरम्भ होने वाली रामलीला का विस्तार अन्य स्थानों में भी हुआ जैसे-जैसे समय बीता देश के विभिन्न स्थानों के भी अतिरिक्त कही-कही तो विदेशो मे भी रामलीला का प्रदर्शन होने लगा है काशी में आरम्भ होने वाली यह रामलीला काशी के निकट चुनार भी पहुची और नगर के रईसों और जमीदारो के प्रयास से इसका पहला प्रदर्शन गंगेश्वर नाथ मंदिर के पास हुआ आरम्भ में यह चुनार की रामलीला मात्र तीन दिवसीय थी ये बात आज से लगभग डेढ़ सौ साल पहले का है ।
इसके पश्चात लोगो मे ज्यो -ज्यो रुचि बढ़ती गयी रामलीला प्रदर्शन की अवधि तथा स्थान भी बदलते गए क्योकि रामलीला के प्रदर्शन में यहा के जमीदारो जोशी परिवार तथा अग्रवाल समुदाय का विशेष हाथ था और उन दिनों मनोरंजन के साधन बहुत कम थे
इसलिए रामलीला में भीड़ बढ़ने पर इसका प्रदर्शन जोशी परिवार के भव्य उद्यान में शुरू हुआ रामलीला की अवधि भी तीन दिन से बढ़कर एक सप्ताह की हो गयी इसके प्रदर्शन का अवधि बढ़ने से यहा के नागरिकों में भी रुचि जागृत हुयी इसका परिणाम यह हुआ की आगे चलकर जोशी उद्यान में भी स्थान का अभाव होने लगा
इस कारण से इस रामलीला को राघव जी के मंदिर सामने वाले मैदान में ले जाया गया और यहा आने पर रामलीला की अवधि पन्द्रह दिन हो गयी इसके साथ ही अवस्थी परिवार के तथा अन्य उत्साही लोगो ने विभिन्न रामकथाओं तथा नाटको से चुटीले एव सुंदर सम्वादों का संग्रह किया तथा इसे नाटक के रूप में प्रस्तुत करने लगे यहा के रामलीला के सभी पात्र एव कलाकार चुनार के लोग ही होते थे
तथा आज भी यह परम्परा बनी हुयी है राम कथा के पात्रों में राम, लक्ष्मण,भरत, शत्रुध्न, एव सीता के स्वरूप तथा हनुमान ब्राह्मण परिवारों के लोग होते है सृंगार के पश्चात इन्हें श्री लगाई जाती है जिसके कारण इनमे देवत्व की प्रतिष्ठा होती है यधपि काशी एव रामनगर की लीलाओं से प्रेरणा लेकर ही इस चुनार रामलीला का प्रदर्शन आरम्भ हुआ किन्तु नाटक के रूप में ही इसका विकास होता रहा यहा के रामलीला के सवांद श्री हनुमान नाटक, रामचरित मानस आदि ग्रन्थों के आधार पर लिखे गए है
इसमें उस काल के अनेक साहित्यकारों जैसे भानुप्रताप तिवारी आदि का योगदान महत्वपूर्ण रहा इस रामलीला मंच पर सुप्रसिद्ध साहित्यकार #पाण्डेय #बेचन #शर्मा उग्र जी ने भी अभिनय किया था जिन दिनों राघव जी पर रामलीला शरू हुयी इनमे अनेक उत्साहित युवको के भाग लेने के कारण भारी भीड़ होने लगी इस कारण इसे नगर के मध्य में सीताराम जी अग्रवाल के खाली पड़े विशाल मैदान पर ले जाया गया
अब रामलीला की अवधि बढ़ाकर 20 दिन तक कर दी गयी और आज भी यही अवधि वर्तमान है यहा की रामलीला आश्विन कृष्ण अष्टमी से मुकुट पूजन तथा संकल्प के साथ आरम्भ होती है समापन तिथि है आश्विन शुक्ल तेरस ।
पहले रामलीला समिति के पास पक्का भवन न था सृंगार आदि कार्य निकटस्थ बाबा जी के मठ में होता था तथा प्रदर्शन रामलीला मैदान पर होता था आगे चलकर 70 वर्ष पहले भव्य भवन का निर्माण हुआ। इस संस्था ने काल के प्रवाह में बहते हुए बहुत थपेड़े सहे एक जमाना था कि नगर के रईस और जमीदार हाथ मे डण्डे लेकर तथा कन्धे पर रामलीला समिति का पट्टा धारण प्रदर्शन काल मे भीड़ को शांति से बैठाते थे
एव अनुशाशन बनाये रखते थे धीरे-धीरे समय बदला और रामलीला के प्रति लोगो की रुचि कम होने लगी विशेषकर स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद जब जमीदारी उन्मूलन हुआ तब इसमे जुड़े जमीदार क्रमशः अलग होने लगे आगे चलकर सन,1954 में लोग इतने तक गए रामलीला बन्द करने की सूचना प्रसारित कर दी गयी इसी समय इन पंक्तियों के लेखक और कुछ अन्य उत्साहित युवको ने इसके संचालन का भार अपने ऊपर ले लिया
तथा लगभग तीन दशकों तक इसके साथ परिश्रम करके समिति के प्रदर्शन को चरोमोत्कर्ष तक पहुचाया इसके पश्चात फिर कुछ विधाता का ऐसा चक्र चला की रामलीला समिति गड़बड़ा सी गयी इसकी आर्थिक स्तिथि इसका प्रदर्शन और यहा का अनुशाशन प्रभाब छिड़ हो गया यह स्तिथि लगभग दस- बारह वर्षो तक बनी रही समय ने पुनः पलटा खाया और अब इधर कुछ वर्षो से पुनः नगर के उत्साहित एव कर्मठ लोगो ने इसको अपने जिम्मे लिया अब से इधर के वर्षों में सभी क्षेत्रों में रामलीला समिति की प्रतिष्ठा पुनः स्थापित हुई
आजकल तो अनेक निर्माण कार्य समिति द्वारा कराए जा रहे है जिसमे लोगो का सहयोग एवं खूब प्रशंसा मिल रही है पहले यहा की रामलीला गैस के हनडो के प्रकाश में बिना ध्वनि विस्तारक यंत्रो के साथ होती थी किन्तु आज प्रकाश एवं ध्वनि की आधुनिकतम व्यवस्था सुलभ होने के कारण इसके प्रदर्शन की भव्यता भी बढ़ गयी विजया दशमी एव भरत मिलाप की रामलीलाओं को छोड़कर अन्य सभी लीलाएं एक ही स्थान पर मंचित होती है
यहा के स्थानीय पात्रों द्वारा सम्पन्न होने वाली यह रामलीला काफी दूर-दूर तक विख्यात है यहा के सर्वाधिक भीड़ वाली रामलीला धनुष यज्ञ, सीता हरण,अंगद विस्तार, भरत मिलाप आदि है इधर कुछ वर्षों से राम बारात की भी भव्यता बढ़ी है यहा के धनुष यज्ञ को देखने बड़ी दूर-दूर से लोग आते है इस लीला के संवाद बड़े ही चुटीले एव ममस्पर्शी है ।
काशी से आरम्भ होने वाली रामलीला का विस्तार अन्य स्थानों में भी हुआ जैसे-जैसे समय बीता देश के विभिन्न स्थानों के भी अतिरिक्त कही-कही तो विदेशो मे भी रामलीला का प्रदर्शन होने लगा है काशी में आरम्भ होने वाली यह रामलीला काशी के निकट चुनार भी पहुची और नगर के रईसों और जमीदारो के प्रयास से इसका पहला प्रदर्शन गंगेश्वर नाथ मंदिर के पास हुआ आरम्भ में यह चुनार की रामलीला मात्र तीन दिवसीय थी ये बात आज से लगभग डेढ़ सौ साल पहले का है ।
इसके पश्चात लोगो मे ज्यो -ज्यो रुचि बढ़ती गयी रामलीला प्रदर्शन की अवधि तथा स्थान भी बदलते गए क्योकि रामलीला के प्रदर्शन में यहा के जमीदारो जोशी परिवार तथा अग्रवाल समुदाय का विशेष हाथ था और उन दिनों मनोरंजन के साधन बहुत कम थे
इसलिए रामलीला में भीड़ बढ़ने पर इसका प्रदर्शन जोशी परिवार के भव्य उद्यान में शुरू हुआ रामलीला की अवधि भी तीन दिन से बढ़कर एक सप्ताह की हो गयी इसके प्रदर्शन का अवधि बढ़ने से यहा के नागरिकों में भी रुचि जागृत हुयी इसका परिणाम यह हुआ की आगे चलकर जोशी उद्यान में भी स्थान का अभाव होने लगा
इस कारण से इस रामलीला को राघव जी के मंदिर सामने वाले मैदान में ले जाया गया और यहा आने पर रामलीला की अवधि पन्द्रह दिन हो गयी इसके साथ ही अवस्थी परिवार के तथा अन्य उत्साही लोगो ने विभिन्न रामकथाओं तथा नाटको से चुटीले एव सुंदर सम्वादों का संग्रह किया तथा इसे नाटक के रूप में प्रस्तुत करने लगे यहा के रामलीला के सभी पात्र एव कलाकार चुनार के लोग ही होते थे
तथा आज भी यह परम्परा बनी हुयी है राम कथा के पात्रों में राम, लक्ष्मण,भरत, शत्रुध्न, एव सीता के स्वरूप तथा हनुमान ब्राह्मण परिवारों के लोग होते है सृंगार के पश्चात इन्हें श्री लगाई जाती है जिसके कारण इनमे देवत्व की प्रतिष्ठा होती है यधपि काशी एव रामनगर की लीलाओं से प्रेरणा लेकर ही इस चुनार रामलीला का प्रदर्शन आरम्भ हुआ किन्तु नाटक के रूप में ही इसका विकास होता रहा यहा के रामलीला के सवांद श्री हनुमान नाटक, रामचरित मानस आदि ग्रन्थों के आधार पर लिखे गए है
इसमें उस काल के अनेक साहित्यकारों जैसे भानुप्रताप तिवारी आदि का योगदान महत्वपूर्ण रहा इस रामलीला मंच पर सुप्रसिद्ध साहित्यकार #पाण्डेय #बेचन #शर्मा उग्र जी ने भी अभिनय किया था जिन दिनों राघव जी पर रामलीला शरू हुयी इनमे अनेक उत्साहित युवको के भाग लेने के कारण भारी भीड़ होने लगी इस कारण इसे नगर के मध्य में सीताराम जी अग्रवाल के खाली पड़े विशाल मैदान पर ले जाया गया
अब रामलीला की अवधि बढ़ाकर 20 दिन तक कर दी गयी और आज भी यही अवधि वर्तमान है यहा की रामलीला आश्विन कृष्ण अष्टमी से मुकुट पूजन तथा संकल्प के साथ आरम्भ होती है समापन तिथि है आश्विन शुक्ल तेरस ।
पहले रामलीला समिति के पास पक्का भवन न था सृंगार आदि कार्य निकटस्थ बाबा जी के मठ में होता था तथा प्रदर्शन रामलीला मैदान पर होता था आगे चलकर 70 वर्ष पहले भव्य भवन का निर्माण हुआ। इस संस्था ने काल के प्रवाह में बहते हुए बहुत थपेड़े सहे एक जमाना था कि नगर के रईस और जमीदार हाथ मे डण्डे लेकर तथा कन्धे पर रामलीला समिति का पट्टा धारण प्रदर्शन काल मे भीड़ को शांति से बैठाते थे
एव अनुशाशन बनाये रखते थे धीरे-धीरे समय बदला और रामलीला के प्रति लोगो की रुचि कम होने लगी विशेषकर स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद जब जमीदारी उन्मूलन हुआ तब इसमे जुड़े जमीदार क्रमशः अलग होने लगे आगे चलकर सन,1954 में लोग इतने तक गए रामलीला बन्द करने की सूचना प्रसारित कर दी गयी इसी समय इन पंक्तियों के लेखक और कुछ अन्य उत्साहित युवको ने इसके संचालन का भार अपने ऊपर ले लिया
तथा लगभग तीन दशकों तक इसके साथ परिश्रम करके समिति के प्रदर्शन को चरोमोत्कर्ष तक पहुचाया इसके पश्चात फिर कुछ विधाता का ऐसा चक्र चला की रामलीला समिति गड़बड़ा सी गयी इसकी आर्थिक स्तिथि इसका प्रदर्शन और यहा का अनुशाशन प्रभाब छिड़ हो गया यह स्तिथि लगभग दस- बारह वर्षो तक बनी रही समय ने पुनः पलटा खाया और अब इधर कुछ वर्षो से पुनः नगर के उत्साहित एव कर्मठ लोगो ने इसको अपने जिम्मे लिया अब से इधर के वर्षों में सभी क्षेत्रों में रामलीला समिति की प्रतिष्ठा पुनः स्थापित हुई
आजकल तो अनेक निर्माण कार्य समिति द्वारा कराए जा रहे है जिसमे लोगो का सहयोग एवं खूब प्रशंसा मिल रही है पहले यहा की रामलीला गैस के हनडो के प्रकाश में बिना ध्वनि विस्तारक यंत्रो के साथ होती थी किन्तु आज प्रकाश एवं ध्वनि की आधुनिकतम व्यवस्था सुलभ होने के कारण इसके प्रदर्शन की भव्यता भी बढ़ गयी विजया दशमी एव भरत मिलाप की रामलीलाओं को छोड़कर अन्य सभी लीलाएं एक ही स्थान पर मंचित होती है
यहा के स्थानीय पात्रों द्वारा सम्पन्न होने वाली यह रामलीला काफी दूर-दूर तक विख्यात है यहा के सर्वाधिक भीड़ वाली रामलीला धनुष यज्ञ, सीता हरण,अंगद विस्तार, भरत मिलाप आदि है इधर कुछ वर्षों से राम बारात की भी भव्यता बढ़ी है यहा के धनुष यज्ञ को देखने बड़ी दूर-दूर से लोग आते है इस लीला के संवाद बड़े ही चुटीले एव ममस्पर्शी है ।
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