Saturday, 17 June 2017

सोनवा मंडप का माड़ो | Sonava Mandap Chunar Fort Mirzapur U.P



सोनवा मंडप का यह माड़ो -जहा आल्हा के साथ उसका विवाह हुआ था एक छोटा किंतु चार द्वारों वालो स्थापत्य कला का अच्छा नमूना है ।






 सोनवा मंडप  का इतिहास :


1029 ई। में अल्ह खण्ड के अनुसार राजा सहदेव ने इस किले को अपनी राजधानी बना दिया और विन्ध्य पहाड़ी की गुफा में नैना योगी की प्रतिमा की स्थापना की और नामकरण के रूप में नामकरण किया। राजा सहदेव ने 52 अन्य राजाओं पर विजय की याद में 52 खंभे पर आधारित एक पत्थर का छतरी बनाया, किले के अंदर, जो अभी भी संरक्षित है।

उनके पास एक बहादुर बेटी थी जिसने महाहा के तत्कालीन राजा अल्हा के साथ विवाह किया था, जिसकी शादी में सोनव मंडप के नाम से भी संरक्षित रखा गया था। इसके अलावा कुछ अन्य कहानियां भी किले के साथ मैग्ना-देवगढ़, रतन देव के बुर्ज (टॉवर) और राजा पिथौरा के साथ भी जुड़े हुए हैं, जिसने इसके नाम पर पत्थरगढ़ भी रखा था।





इस मण्डप की दीवारें दो मीटर चौड़ी है और जिनमे अंदर ही अंदर जाने के लिए सीढ़िया बनी हुई है यह सोनवा मण्डप ठीक उस विशाल तहखाने से लगा हुआ है जिनमे बिभिन्न स्थानों को जाने के लिए सुरंगों के होने का अनुमान लगया जाता है ।


यह अत्यंत हवादार स्थान है इसके चारों द्वारों पर शेरशाह सुरी के समय के फ़ारसी एवम अरबी में लिखे शिलालेख अब भी उपस्तिथ है ।

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