Wednesday, 14 June 2017

चुनारगढ़ के धरती पर जन्मे विख्यात कवि एवं साहित्यकार कवि पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र '


कवि पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र हिंदी के अप्रितम साहित्यकार एवं पत्रकार थे अपने समय में क्रन्तिकारी कवि होने के कारण स्वतंत्रता संग्राम संग्राम में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा है अपनी विशिष्ट शैली तथा भाषा के कारण भी उनका बड़ा मान था बीसवीं सदी के दूसरे तीसरे दसक में पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र जी का जन्म चुनारगढ़ सददुपुर मोहल्ले में 1900 ई. में 24 दिसम्बर अर्थात विक्रम संवत, 1957 पौष कृष्ण अष्टमी को हुआ था 



रामचन्‍द्र भगवान् अयोध्‍या नगरी में पैदा हुए थे, जो पवित्र तीर्थ मानी जाती है। मैं चुनार में पैदा हुआ, जो काशी के कलेजे और गंगातट पर होकर भी त्रिशंकु की साया में होने से तीर्थ नहीं है। इतना ही नहीं, तीर्थ का पुण्‍य हरण करनेवाला भी है। फिर भी, चुनार मुझे तीर्थ और अयोध्‍या और साकेत से भी अधिक प्रिय है। यह अपनी जन्‍म-भूमि चुनार के बारे में पाण्‍डेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ की राय है।



उनका बचपन चुनार तथा रामलीला मण्डलियों में काम करते हुए बिता चौदह वर्ष की आयु में जब उनके चाचा ने चुनार के चर्च मिशन स्कुल मिशन स्कुल में नाम लिखवाया तो वह छठी व् सातवी तक यहा पढ़ सके फिर अपना भाग्य आजमाने काशी पहुच गये उनके चाचा जो चुनार से यहा आ गए थे उन्ही की कृपा से वह हिन्दू स्कुल कमच्छा में फिर आठवी क्लास में पढ़ने लगे बनारस आना उनके लिए सुखद रहा दो वर्ष के आयु में ही पितृविहीन हो जाने वाले उग्र जी अपने बड़े भाई उमाचरण पाण्डेय से बहुत क्षुब्ध रहा करते थे


यह तो अच्छा हुआ की उनके चाचा जगनाथ पांडेय ने उनकी शिक्षा की व्यवस्था की और वह काशी के प्रमुख लोगो के सम्पर्क में आये हिन्दू स्कुल में पढ़ते हुए वह पंडित कमलापति त्रिपाठी जो उनके सहपाठी थे उनके साथ प्रशिद्ध क्रांतिकारियों सचिन्द्रनाथ सान्याल, राजेंद्र लाहिड़ी , रामगाले गांगुली, मन्मथनाथ गुप्त, आदि के सम्पर्क में आये 




उग्र जी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है उनके कुल पांच गुरु थे उमाचरण पाण्डेय प. काशीपति त्रिपाठी लाला भगवान् दिन और पंडित बाबू राव बिष्णु पराड़कर, सन, 1921 ई. में जब गांधी जी काशी आये हुए थे तब उग्र एवम कमलापति जी ने गांधी जी के चरण् औचक पकड़कर चकित कर दिया था उग्र जी स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रीय भाग लेने के कारण इसी वर्ष जेल गए थे जेल में ही उस समय जे बी कृपलानी सम्पूर्णानन्द जी आदि सैकड़ो प्रतिष्ठित लोग बंदी थे यहा इन सबसे प्रांगण सम्बन्ध बने बनारस के सम्बन्ध में उग्र जी ने अपनी खबर में लिखा है


सो छान ! छान! किसी की न मान! काशी की हवा में ज्ञान सन, 1923 में उग्र जी का महात्मा ईसा नाटक छपा और उनके सम्पादन में भुत का प्रकाशन शुरू हुआ 'भूत' हास्य -व्यंग्य का पात्र था अपने काशी प्रवास के समय ही दशरथ प्रशाद द्रिवेदी के अनुरोध पर उन्होंने गोरखपुर से प्रकाशित स्वदेश के दशहरा अंक का 1924 ई में सम्पादन किया इसमें क्रन्तिकारी रचनाएं छापने के कारण स्वदेश का वह अंक तथा प्रेस अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया था और द्रिवेदी जी, उग्र जी को जेल भी जाना पड़ा था 

मिर्जापुर के चुनार में जन्मे पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र जी और शिक्षा-दीक्षा के लिये बनारस पहुचे उग्र जी पर मिर्जापुरी पानी तथा बनारसी पानी का रंग जीवन भर चढ़ा रहा अपने इस रंग के कारण वह सदा दो धारी तलवार बने रहे 1924 ई में ही मतवाला में लिखते हुए वह आग बन गए थे कलकत्ता के मतवाला में सेठ महादेव प्रशाद जी मिर्जापुर के थे 

लिखते हुए वह सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला आचार्य शिवपूजन सहाय तथा मुंशी नवजादिक लाल के सम्पर्क में भी आये बनारस की हजारो स्मृतियां सजोये वह पूरे भारत में घूमते रहे और प्रखर पत्रकार, नाटककार उपन्यास्कार ,कहानीकार के रूप में प्रतिष्टित होकर 23 मार्च 1967 ई. को अपनी यात्रा समाप्त की दिल्ली में उग्र जी जीवन भर विद्रोही बने रहे तथा वह विवाह बंधन में भी नही बंधे अपने पीछे विपुल साहित्य वो छोड़ गए है अतः आज उनके नये सिरे से समीक्षा की जरूरत है

कवि पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र ' रचित ग्रंथ इस प्रकार हैं-
  • नाटक
महात्मा ईसा, चुंबन, गंगा का बेटा, आवास, अन्नदाता माधव महाराज महान्।
  • उपन्यास
चंद हसीनों के खतूत, दिल्ली का दलाल, बुधुवा की बेटी, शराबी, घंटा, सरकार तुम्हारी आँखों में, कढ़ी में कोयला, जीजीजी, फागुन के दिन चार, जूहू।
  • कहानी
कुल 97 कहानियाँ।
  • काव्य
ध्रुवचरित, बहुत सी स्फुट कविताएँ।
  • आलोचना
तुलसीदास आदि अनेक आलोचनातमक निबंध।
  • संपादित
गालिब : उग्र

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