पूर्वांचल भर में शायद ही किसी जगह पर एसी
दरगाह होगी जहाँ अनेकों सूफी संतो की दरगाह हो. और वहा पर की गयी पत्थरो पर
नक्काशी और वास्तु कला के लिए प प्रसिद्ध हो. इतिहास गवाह है कि मुहम्मद
साहब के सेनापति शहाबुद्दीन ने पूर्ण रूप से यहाँ मुसलमान राज्य स्थापित
किया था. एसे में इस वंश के शासक की विधवा स्त्री से विवाह कर शेरशाह ने
1530 ई. में यहाँ अपना अधिकार जमाया. 1516 ई. में हुमायूँ ने रूमी की
सहायता से छः महीने तक इस स्थान को घेर कर कब्ज़ा किया था.
शेरशाह के हाथों में फिर कुछ समय बाद चुनारगढ़ आ गया. 1575 में मुगलों ने
पुन: चुनारगढ़ पर कब्ज़ा कर अपना शासन कर लिया. अकबर के समय में मिर्ज़ापुर
जनपद इलाहाबाद के अंतर्गत आता था. जहाँगीर के शासन के समय शाह कासिम
सुलेमानी अफगान मोलवी साहब को बादशाह के आदेश से उन्हें कैद कर चुनार किले
में रखा गया. उनके बारे में माना जाता है कि वह राजकुमार खुसरों के समर्थक
थे.
1607ई . इनकी मृत्यु के बाद इनके अनुयायियों ने दरगाह को बनवाया जो
स्थापत्य कला का बेहतरीन उदहारण है. इस दरगाह में अनेको सूफी संतों की
दरगाह है. क्या हिन्दू क्या मुस्लिम सभी धर्मो के लोग भरी संख्या में यहाँ
आते है. तथा यहाँ प्रुर्वांचल के सभी जिलो समेत बिहार और झारखंड से भी भरी
संख्या में जायरीन दरगाह पर आते है और चादरे चढाते है. मान्यता है कि इस
दरगाह में आने मात्र से ही लोगो के सरे कष्ट दूर हो जाते है और उनकी मन्नते
पूर्ण होती हैं. यह दरगाह जिले की प्रमुख धरोहरों में से एक है.
यह मुग़लकालीन दरगाह तमाम ऐतिहासिक रहस्य अपने आप में समेटे हुए है.सैकड़ों
साल पुराने इस दरगाह को देखने से लगता ही नहीं की यह इतना पुराना है, यह उस
काल के अद्भुत निर्माण का नमूना है प्रस्तुत करती है. एक तरफ चुनार का
किला तो दूसरो ओर यह दरगाह जो यहाँ आने वाले शैलानियो के लिए भी आकर्षण का
केन्द्र है इस दरगाह के प्रवेश द्वार और अन्य अन्दर की इमारतों पर की गयी
नक्काशी देखने लायक है मानो जैसे उस समय के कारीगरों ने अपनी अद्भुत कला से
नक्काशियो द्वारा इसमे जान डाल दी हो. जो भी चुनर किला का भ्रमण करने आते
है वो जरुर इस दरगाह पर अपना मत्था टेकते है.
दरगाह शरीफ का प्रसिद्ध मेला
इस मेले में हर वर्ग और धर्म के लोग समान रूप से पहुंचते हैं।
चैत माह के तीन गुरूवार को लगने वाले इस मेले में देश के कोने कोने से आए बाबा के भक्तों ने अपनी मन्नते मांगते हैं तो वहीं मुराद पूरी होने की खुशी में बाबा के मजार पर चादरें चढ़ाई और फातिहा पढ़ी जाती है।
मन्नत मांगने वालों ने अपनी दरख्वास्त दरगाह में बने खूंटी पर धागों में बांध कर लगाई जाती है।
चैत माह के तीन गुरूवार को लगने वाले इस मेले में देश के कोने कोने से आए बाबा के भक्तों ने अपनी मन्नते मांगते हैं तो वहीं मुराद पूरी होने की खुशी में बाबा के मजार पर चादरें चढ़ाई और फातिहा पढ़ी जाती है।
मन्नत मांगने वालों ने अपनी दरख्वास्त दरगाह में बने खूंटी पर धागों में बांध कर लगाई जाती है।
Mashaallah
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