चुनार जंक्शन से दक्षिण दिशा की तरफ लगभग 1 किलोमीटर दूर चुनार सक्तेशगढ़ मार्ग पर पहाड़ो में बसा माता का यह मंदिर अपनी प्राकृतिक सौंदर्य झरने तथा त्रिकोण यात्रा हेतु प्रसिद्ध है। मंदिर के आस पास का नजारा मन को अत्यंत शांति प्रदान करने वाला शुद्ध वातावरणयुक्त है ।
माता का यह मंदिर धार्मिक मान्यताओ के अनुसार अपनी त्रिकोण यात्रा के लिए प्रसिद्ध है। जैसे विंध्याचल माता के दर्शन को त्रिकोण यात्रा के बाद ही पूर्ण माना जाता है ठीक उसी तरह यहाँ की मान्यता है। दुर्गा माता मंदिर के बगल में त्रिकोण यात्रा के दूसरे चरण में काली माता का मंदिर तथा तत्पश्चात तीसरे चरण में भैरव जी का मंदिर काली माता मंदिर के सामने उपस्थित है।
माता का यह मंदिर धार्मिक मान्यताओ के अनुसार अपनी त्रिकोण यात्रा के लिए प्रसिद्ध है। जैसे विंध्याचल माता के दर्शन को त्रिकोण यात्रा के बाद ही पूर्ण माना जाता है ठीक उसी तरह यहाँ की मान्यता है। दुर्गा माता मंदिर के बगल में त्रिकोण यात्रा के दूसरे चरण में काली माता का मंदिर तथा तत्पश्चात तीसरे चरण में भैरव जी का मंदिर काली माता मंदिर के सामने उपस्थित है।
आसपास के जिलो से प्रतिवर्ष हज़ारो की संख्या में श्रद्धालु यहाँ दर्शन करने के साथ साथ अपनी छुट्टियां मनाते है। आसपास की ग्रामीण जनसंख्या वैवाहिक कार्यक्रमो के लिए भी यहाँ उपस्थित होती है। अनेक भक्तगण यहाँ अपनी मन्नत तथा मान्यताओ को भी पूर्ण करने के लिए भी आते है। बहुत से लोग अपने बच्चों के मुंडन कार्यक्रम को भी यहाँ आयोजित करते है।
ऐसी मान्यता है की जो लोग माता विंध्याचल में अपनी त्रिकोण यात्रा पूरी नही कर पाते है वो यही दर्शन कर के अपनी यात्रा को पूर्ण कर सकते है। उन्हें उसी त्रिकोण यात्रा का फल प्राप्त होता है। वर्षा के मौषम में अथवा सावन माह में लगने वाले मेले के समय यहाँ घूमना उचित समय है।तब आप यहाँ के झरनो को लुफ्त अत्यंत प्रफुल्लित मन के साथ उठा सकते है।
कुछ विशेष बातें :-
(1) यहाँ से सिद्धनाथ दरी लगभग 19 किलोमीटर दूर स्थित है । जहाँ आप अत्यंत सुदर जलप्रपात का आनद ले सकते है।
(2) मंदिर परिसर से लगभग 16 किलोमीटर की दुरी पे बाबा अड़गड़ानंद जी का भी आश्रम है ।
(3) ऐसी मान्यता है है की देवकीनन्दन खत्री जी जब यहाँ से एक किलो मीटर की दुरी पर स्थित एक पीपल के निचे अपने उपन्यास चंद्रकांता को लिख रहे थे तब उनकी मुलाक़ात गुरु दत्रात्रेय जी से हुई थी।
ध्यान देने योग्य :-
यह मंदिर हमेशा से अनेक प्रकार की उपेक्षाओं का शिकार हुआ है ।यहाँ आस पास प्रशासन द्वारा करोड़ो के पेड पौधे लगाये गए लेकिन वनस्पति माफियाओ तथा लोकल लोगो द्वारा यह वन कटान का शिकार हो रहा है। प्रति वर्ष आने वाले श्रद्धालुओं की अपेक्षा यहाँ कूड़ा फेकने का कोई विशेष प्रबंध नही है जिसकी वजह से यहाँ गन्दगी बहुत बढ़ती जा रही है।
(1) इंटरनेट-upeasttourism,varansitourism,wikipidea,youtube videos
(2) स्वयं का अनुभव
(3) photograph:-Facebook chunar page and chunar club on facebook
ऐसी मान्यता है की जो लोग माता विंध्याचल में अपनी त्रिकोण यात्रा पूरी नही कर पाते है वो यही दर्शन कर के अपनी यात्रा को पूर्ण कर सकते है। उन्हें उसी त्रिकोण यात्रा का फल प्राप्त होता है। वर्षा के मौषम में अथवा सावन माह में लगने वाले मेले के समय यहाँ घूमना उचित समय है।तब आप यहाँ के झरनो को लुफ्त अत्यंत प्रफुल्लित मन के साथ उठा सकते है।
यहाँ पर आपको उपस्थित कुण्ड में सदैव जल उपस्थिर मिलेगा जहाँ पर श्रद्धालु तथा मंदिर के लोग स्नान करते है। बरसात के दिनों में इन कुंडो में स्नान करने का यहाँ अपना ही अंदाज है।आसपास के क्षेत्रो से बहुत अधिक संख्या में लोग यहाँ कुण्ड में स्नान का आनंद लेने हेतु यहाँ जरूर आते है।
दुर्गा खोह:-
जब आप मंदिर के अंदर प्रवेश करेंगे तो आपको एक अत्यंत छोटा गुफा की तरह स्थान सीढ़ियों को पास मिलेगा ।यह वही स्थान है जहाँ माता प्रकट हुई थी।
दुर्गा माता मंदिर के बाहर आपको महादेव जी ,हनुमान जी,गणेश भगवान् तथा भैरव जी का भी मंदिर मिलेगा जहाँ पर दर्शन को अत्यंत पुण्य माना जाता है।
काली खोह:-
त्रिकोण यात्रा के अगले भाग में हम यहाँ काली माता के दर्शन करते है। काली माता के दर्शन हेतु जाने का मार्ग अत्यंत सुन्दर तथा प्राकृतिक हरियाली को यहाँ पिरोये हुए है।
माता काली के मंदिर के पास एक कूप है जिसमे सदैव जल रहता है।आस पास की ऐसी मान्यता है की लगातार इस कूप का जल पिने से उदर रोग में अत्यंत लाभकारी सिद्ध होता है।
वटुक भैरों नाथ जी:-
त्रिकोण यात्रा के अगले चरण में यहाँ हम श्री वटुक भैरो नाथ जी के दर्शन करते है। यहाँ उपस्थित एक अन्य कुण्ड तथा पीछे उपस्थित पहाड़ो से आता हुआ जल और उसकी ध्वनि लोगो के मन को अपनी तरफ आकर्षित करती है।
बकरिया कुण्ड:-
यदि चुनार जंक्शन की तरफ से माता दुर्गा मंदिर के दर्शन के लिए जाते वक़्त मंदिर से आधा किलोमीटर पहले यह स्थित है।यह कुण्ड सामान्यतः पहाड़ो से गिरने वाले जल से भरा रहता है लेकिन यदि आप बारिश के मौषम में यहाँ आते है तो आप जलमग्न कुण्ड का आनंद ले पाएंगे।
(1) यहाँ से सिद्धनाथ दरी लगभग 19 किलोमीटर दूर स्थित है । जहाँ आप अत्यंत सुदर जलप्रपात का आनद ले सकते है।
(2) मंदिर परिसर से लगभग 16 किलोमीटर की दुरी पे बाबा अड़गड़ानंद जी का भी आश्रम है ।
(3) ऐसी मान्यता है है की देवकीनन्दन खत्री जी जब यहाँ से एक किलो मीटर की दुरी पर स्थित एक पीपल के निचे अपने उपन्यास चंद्रकांता को लिख रहे थे तब उनकी मुलाक़ात गुरु दत्रात्रेय जी से हुई थी।
यह मंदिर हमेशा से अनेक प्रकार की उपेक्षाओं का शिकार हुआ है ।यहाँ आस पास प्रशासन द्वारा करोड़ो के पेड पौधे लगाये गए लेकिन वनस्पति माफियाओ तथा लोकल लोगो द्वारा यह वन कटान का शिकार हो रहा है। प्रति वर्ष आने वाले श्रद्धालुओं की अपेक्षा यहाँ कूड़ा फेकने का कोई विशेष प्रबंध नही है जिसकी वजह से यहाँ गन्दगी बहुत बढ़ती जा रही है।
हमारे इस पोस्ट का एक मात्र उद्देश्य यहाँ पर पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ साथ इसकी सफाई और व्यवस्था पर आपका ध्यान केंद्रित करना है।
Content source:-(1) इंटरनेट-upeasttourism,varansitourism,wikipidea,youtube videos
(2) स्वयं का अनुभव
(3) photograph:-Facebook chunar page and chunar club on facebook
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