तिलस्मी चुनार का किला हजारों साल बाद अब आम जनता के लिए अब खोला
जाएगा। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश सरकार इस किले का सौंदर्यीकरण
कराने की तैयारी कर रही है। आजादी के बाद किले में पीएसी प्रशिक्षण केंद्र
बना दिया गया था। इस किले के चारों ओर ऊंची-ऊंची दीवारें हैं। यहां से
सूर्यास्त का नजारा देखना बहुत ही मनोहारी प्रतीत होता है। मौजूदा वक्त में
इस किले के ज्यादातार हिस्सों पर पीएसी प्रशिक्षण केंद्र संचालित किए
जाने से आम जनता का किले के कई हिस्सों में जाने पर बैन है।
किले पर हुआ कब्जा
चुनार का किला जीतना शान का हिस्सा
क्या है भृतहरि समाधि
उजड़ रहा फांसी घर
कैसे हुआ किले का निर्माण
जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर पूर्व में गंगा किनारे करीब ढाई
हजार साल पहले बने चुनार किले का निर्माण 56 ई.पू्. उज्जैन के तत्कालीन
राजा विक्रमादित्य ने अपने भाई राजा भर्तहरी के लिए करवाया था। राजा
भर्तहरी की समाधि भी किले में मौजूद है। भक्त समाधि पर मत्था टेककर दर्शन
पूजन करते हैं। बाबा के मंदिर में तेल और तस्वीर चढ़ाने की परंपरा है। किले
के निर्माण से लेकर अब तक 17 राजाओं के कब्जे में चुनार किला रहा है।
किले पर हुआ कब्जा
गंगा तट पर यह जगह बड़ी खूबसूरत और मनोरम है। एक शिलापत्र पर उल्लेख
मिलता है कि उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य के बाद इस किले पर 1141 से 1191
ई. तक पृथ्वीराज चौहान, 1198 में शहाबुद्दीन गौरी, 1333 से स्वामीराज,
1445 से जौनपुर के मुहम्मदशाह शर्की, 1512 से सिकंदर शाह लोदी, 1529 से
बाबर, 1530 से शेरशाह सूरी और 1536 से हुमायूं आदि शासकों का कब्जा रहा।
शेरशाह सूरी से हुए युद्ध में हुमायूं ने इसी किले में शरण ली थी। इस
प्रसिद्ध किले की मरम्मत शेरशाह सूरी ने करवाई थी।
चुनार का किला जीतना शान का हिस्सा
कहा जाता है कि एक बार इस किले पर अकबर ने कब्जा कर लिया था। उस समय
यह किला अवध के नवाबों के अधीन था। इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले
गवर्नर वारेन हेस्टिंग्ज ने इसे अपना आशियाना बनाया था। 1772 में मुगलों से
ईस्ट इंडिया कंपनी ने यह किला जीता। इसके बाद से किले पर अंग्रेजों का
कब्जा हो गया। गंगा किनारे बने इस किले को हमेशा ही रणनीतिक तौर पर अहम
माना गया। देश में शासन करने वाले हर राजाओं के लिए चुनार का किला जीतना
शान का हिस्सा था।
क्या है भृतहरि समाधि
राजा भृतहरि की समाधि किले के उत्तरी हिस्से में है। समाधि पर जाने के
लिए उत्तरी गेट से आम जनता प्रवेश करती है। विजिटर रजिस्टर में हस्ताक्षर
कराने के बाद ही पीएसी के जवान उन्हें पूछताछ के बाद आगे जाने देते हैं।
इसके बाद जनता किले में मौजूद समाधि, सोनवा मंडप, प्राचीन कारागार देख पाती
है। जेल की छत पर बने सोनवा मंडप के एक हिस्से में हर साल श्रीकृष्ण
जन्मोत्सव मनाया जाता है।
उजड़ रहा फांसी घर
गंगा के दक्षिणी हिस्से में बना फांसीघर समय के बदलते दौर में थपेड़ों
के वार से जर्जर हो गया है। उपेक्षित पड़े हिस्से की दीवार भी भसक रही है।
तमाम राजाओं के कब्जे में रहे किले के इस हिस्से में कई लोगों को फांसी पर
लटकाया गया। बताया जाता है कि फांसी के बाद मृतक को गंगा में धकेल दिया
जाता था। किले में पानी की आपूर्ति करने के लिए प्राचीन विधि अपनाई जाती
थी। नीचे से पनचक्की की तरह पानी लाकर ऊपर नाली में गिराया जाता था। नाली
से पूरे किले में पानी का इस्तेमाल किया जाता था।
सूर्य घड़ी
किले के दक्षिणी हिस्से में गवर्नर वारेन हेस्टिंग्ज के बंगले के
सामने पत्थर की सूर्य घड़ी बनी हुई है। इस पर सूर्य की पड़ रही छाया से समय
को पता किया जा सकता है। इस हिस्से में इन दिनों आम जनता का प्रवेश वर्जित
है।
तिलस्मी किला
देवकीनंदन खत्री का उपन्यास चंद्रकांता संतति चुनार के किले पर ही
लिखा गया है। किले से दक्षिण सक्तेशगढ़ किला, रामगढ़ किला पश्चिम में विजयगढ़
किला तो पूर्व में रामनगर का किला स्थित है। किवदंती है कि इन किलाओं को
जोड़ने वाली सुरंग आज भी यहां मौजूद है। इस किले का आकार भगवान विष्णु के
चरण की आकृति का है। इस वजह से किले को प्राचीन काल में चरणाद्रिगढ़ के नाम
से जाना जाता था।
किले में स्थित है सीढ़ी वाला कुआं
किले में प्राचीन विशाल कुंआ स्थित है। इस कुएं मे जाने के लिए चौड़े
रास्ते के साथ ही सीढ़ियां बनी हैं। इस पर चलकर कुएं के पानी तक पहुंचा जा
सकता है। इसके मार्ग पर प्राचीन लिपि में कुछ लिखा गया है, जो इस किले को
और भी रहस्यमयी बनाता है।
विशाल द्वार पर चेतक के खुर का निशान
किले के पूर्वी विशाल द्वार पर चढ़ाई वाले मार्ग पर बना खुर का निशान
राणा प्रताप के घोड़े चेतक का बताया जाता है। कहा जाता है कि लंबी छलांग
लगाने में माहिर चेतक ने किले के बाहर से छलांग लगाकर किले में प्रवेश किया
था। उस समय उसके वजन और वेग से पत्थर पर गड्ढा बन गया था, जो आज भी मौजूद
है।
कब्जे में किला
अंग्रेजो की गुलामी से मुक्ति के बावजूद किला आजाद नहीं हुआ।
देसी-विदेशी राजाओं की पसंद रहे इस किले पर आज भी पीएसी प्रशिक्षण के नाम
पर कब्जा है। पुरातत्व विभाग के अधीन होने के बावजूद किले को संरक्षित रखने
के बजाए मनमाने ढंग से अपनी सुविधानुसार निर्माण कराया गया है।
पर्यटन का खजाना
चुनार क्षेत्र में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। प्रकृति ने इलाके
में जमकर अपना खजाना लुटाया है। एतिहासिक महत्व के इस किले से महज 16
किलोमीटर की दूरी पर सिद्धनाथ की दरी प्राकृतिक जल प्रपात है। विभिन्न
प्रदेश के सैलानी बरसात के दिनों में यहां आते हैं। इसके अलावा जिले में
प्राकृतिक जल प्रपात विंढम फाल, देवदरी, राजदरी, खड़ंजा फाल, चुना दरी,
लखनिया फाल, कुशियरा फाल पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। दर्जनों जलप्रपात
किले से महज पांच से 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। बरसात में पर्यटक
झरनों के बीच बाटी-चोखा का स्वाद लेकर प्रकृति के उपहार का आनंद लेते हैं।
इन क्षेत्रों के विकास के लिए योजना बनाई गई है। धार्मिक रूप से गंगा नदी
के किनारे विंध्य पर्वत पर विराजमान आदिशक्ति माता विंध्यवासिनी अपने तीनों
रूपों महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती में विराजमान हैं।
किले तक पहुंचने का मार्ग
दिल्ली-कोलकाता रेल मार्ग के बीच चुनार रेलवे स्टेशन से किला महज तीन
किलोमीटर की दूरी पर है। रेलवे स्टेशन के दक्षिणी भाग में मीरजापुर-वाराणसी
राजमार्ग है। जलमार्ग से भी वाराणसी से इस किले के घाट पर जाया जा सकता
है। हवाई मार्ग से सफर करके किले पर पहुंचने के लिए बाबतपुर (वाराणसी)
नजदीकी हवाई अड्डा है। यहां से किले की दूरी करीब 70 किलोमीटर है।
Source- News web
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