चुनार का गौरवशाली इतिहास
चुनार क्षेत्र मीरजापुर जनपद का एक तहसील चुनार है। काशी (वाराणसी) और विन्ध्य क्षेत्र के बीच स्थित होने के कारण चुनार क्षेत्र भी ऋषियों-मुनियों,महर्षियों, राजर्षियों, संत-महात्माओं, योगियों-सन्यासियों, साहित्यकारों इत्यादि के लिए आकर्षण के योग्य क्षेत्र रहा है। सोनभद्र सम्मिलित मीरजापुर व चुनार क्षेत्र सभी काशी के ही अभिन्न अंग थे।
चुनार प्राचीन काल से आध्यात्मिक, पर्यटन और व्यापारिक केन्द्र के रूप में स्थापित है। गंगा किनारे स्थित होने से इसका सीधा व्यापारिक सम्बन्ध कोलकाता से था और वनों से उत्पादित वस्तुएँ का व्यापार होता था। चुनार किला और नगर के पश्चिम में गंगा, पूर्व में पहाड़ी जरगो नदी उत्तर में ढाब का मैदान तथा दक्षिण में प्राकृतिक सुन्दरता का विस्तार लिए विन्ध्य पर्वत की श्रृंखलाएँ हैं जिसमें अनेक जल प्रपात, गढ़, गुफा और घाटियाँ हैं।
सतयुग में एक विचित्र स्थिति उत्पन्न हो गयी थी, हुआ यह था कि एक प्रतापी, धर्मपरायण, प्रजावत्सल, सेवाभावी, दानवीर, सौम्य, सरल यानी सर्वगुण सम्पन्न राजा बलि हुये। लोग इसके गुण गाने लगे और समाजवादी राज्यवादी होने लगे। राजा बलि का राज्य बहुत अधिक फैल गया।
समाजवादियों के समक्ष यानी मानवजाति के समक्ष एक गम्भीर संकट पैदा हो गया कि अगर राज्य की अवधारणा दृढ़ हो गयी तो मनुष्य जाति को सदैव दुःख, दैन्य व दारिद्रय में रहना होगा क्योंकि अपवाद को छोड़कर राजा स्वार्थी होगें, परमुखपेक्षी व पराश्रित होगे। अर्थात अकर्मण्य व यथास्थिति वादी होगे, यह भयंकर स्थिति होगी परन्तु समाजवादी असहाय थे।
राजा बलि को मारना संभव न था और उसके रहते समाजवादी विचारधारा का बढ़ना सम्भव न था। ऐसी स्थिति में एक पुरूष कीआत्मा अदृश्य प्राकृतिक चेतना द्वारा निर्मित परिस्थितियों में प्राथमिकता से वर्तमान में कार्य करना, में स्थापित हो गयी। वह राजा बलि से थोड़ी सी भूमि समाज या गणराज्य के लिए माँगा। चूँकि राजा सक्षम और निश्ंिचत था कि थोड़ी भूमि में समाजया गणराज्य स्थापित करने से हमारे राज्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
इसलिए उस पुरूष को राजा ने थोड़ी भूमि दे दी। जिस पर उसने स्वतन्त्र, सुखी, स्वराज आधारित समाज-गणराज्य स्थापित किया और उसका प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ता गया और वह राजा बलि के सुराज्य को भी समाप्त कर दिया और समाज या गणराज्य की स्थापना की गयी। चूँकि यह पुरूष बौना अर्थात् छोटे कद का तथा स्वभावऔर ज्ञान में ब्राह्मण गुणों से युक्त था इसलिए कालान्तर में इसे भगवान विष्णु के पाचवें अवतार वामन अवतार का नाम दिया गया।
चूँकि गणराज्य स्थापना का पहला चरण (आदि चरण) का क्षेत्र यह चुनार क्षेत्र ही था इसलिए इसका नाम चरणाद्रि पड़ा जो कालान्तर में चुनार हो गया। पहला चरण जिस भूमि पर पड़ा वह चरण के आकार का है। हमारे प्राचीन भूगोलविज्ञानियों ने अपने सर्वेक्षणों से यह पता लगा लिया कि विन्ध्य की सुरम्य उपत्यका में स्थित यह पर्वत मानव के चरण के आकार का है। विन्ध्य पर्वत श्रंृखला के इस पहाड़ी पर ही हरिद्वार से मैदानी क्षेत्र में बहने वाली गंगा का और विन्ध्य पर्वत की श्रृंखला से पहली बार संगम हुआ है जिस पर चुनार किला स्थित है।
अनेक स्थानों पर वर्णन है कि श्रीराम यहीं से गंगा पार करके वनगमन के समय चित्रकूट गये थे। फादर कामिल बुल्के के शोध ग्रन्थ ”राम कथा: उद्भव और विकास“ के अनुसार कवि वाल्मीकि की तपस्थली चुनार ही है इसलिए कहीं-कहीं इसे चाण्डालगढ़ भी कहा गया है। इसे पत्थरों के कारण पत्थरगढ़, नैना योगिनी के तपस्थली के कारणनैनागढ़, भर्तृहरि के कारण इसे भर्तृहरि की नगरी भी कहा जाता है। चुनार क्षेत्र के पत्थर और चीनी मिट्टी की कलाकृतियाँ प्रसिद्ध हैं। राजा-रजवाड़ों के समय चुनार के पत्थरों की काफी माँग थी।
राजाओं द्वारा बनवाये गये किले व घाट इसके प्रमाण हैं। लगभग 3000 वर्ष पूर्व गुप्त साम्राज्य में भी इन पत्थरों का जमकर प्रयोग हुआ। चक्रवर्ती सम्राट अशोक द्वारा निर्मित ”अशोक स्तम्भ“ इसका उदाहरण है जिसका एक भाग सारनाथ (वाराणसी) के संग्रहालय में आज भी रखा हुआ है। काशी (वाराणसी) व मीरजापुर के घाटों व मन्दिरों का निर्माण भी यहीं के पत्थरों से हुआ है। सारनाथ बौद्ध मन्दिर, भारत माता मन्दिर व सम्पूर्णानन्द विष्वविद्यालय भी इसके प्रमाण हैं। भारत का संसद भवन, रामकृष्ण मिशन का बेलूड़ मठ का मन्दिर व लखनऊ में बन रहे अनेक स्मारक चुनार के पत्थरों से ही बने हैं। क्षेत्र में जे.पी. समूह का सीमेण्ट फैक्ट्री भी स्थित है।
1. चुनार किला -किले में भर्तृहरि की समाधि, समाधि के सम्बन्ध में बाबर का हुक्मनामा, औरंगजेब का हुक्मनामा, सोनवा मण्डप, शेरशाह सूरी का शिलालेख, अनेक अरबी भाषा में लिखे शिलालेख, आलमगीरी मस्जिद, बावन खम्भा व बावड़ी, जहांगीरी कमरा, रनिवास, मुगलकालीन बारादरी, तोपखाना व बन्दी गृह, लाल दरवाजा, वारेन हेस्टिंग का बंगला, बुढ़े महादेव मन्दिर इत्यादि किले के उत्थान-पतन की कहानियाँ कहती हैं।
2. चुनार नगर – चुनार किले से लगा हुआ ही चुनार नगर है जिसकी भौगोलिक स्थिति बड़ी आकर्षक है। नगर के चारों ओर नदी-नाले, पर्वत-जंगल, झरने, तालाब आदि की बहुतायत है। चुनार नगर उतना ही प्राचीन है जितना चुनार किला। दोनों की स्थापनाव विकास साथ-साथ चलता रहा है।
चुनार नगर क्षेत्र के ऐतिहासिक स्थलों में रौजा इफतियार खां, गंगेश्वरनाथ, आचार्य कूप, कदमरसूल, शाह कासिम सुलेमानी का दरगाह, गदाशाह, मुहम्मदशाह, बच्चूशाह, नवलगीर, सूरदास, बालूघाट के भगवान बामन अवतार, भैरो जी,चक्र देवी, आनन्दगिर का मठ, राघो जी के महाबीर, गंगाराम का स्थल, गुरू नानक की संघत, आचार्य कूप और विट्ठल महाप्रभु, सतीवाड़, हजारी की हवेली, गंगा-जरगो संगम, टेकउर के टिकेश्वर महादेव का श्रीचक्र त्रिकोण, अंग्रेजो का कब्रिस्तान इत्यादि के अपने-अपने इतिहास हैं।
3. चुनार क्षेत्र – चुनार क्षेत्र के अन्तर्गत जमालपुर, नरायनपुर, सीखड़, राजगढ़ का क्षेत्र और एक नगरपालिका क्षेत्र अहरौरा आता है। सम्पूर्ण चुनार क्षेत्र का ऐतिहासिक, प्राकृतिक, धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व अति विशाल और समृद्ध है। इनमें से कुछ ये हैं- जरगो बाँध, बेचूवीर धाम, भण्डारी देवी, लखनियाँ दरी, चूना दरी, गुरूद्वारा बाग सिद्धपीठ दुर्गा खोह,परमहंस स्वामी अड़गड़ानन्द आश्रम, सिद्धनाथ की दरी, सिद्धनाथ धाम ”धुईं बाबा“, शिवशंकरी धाम, गोपालपुर, सीखड़, माँ शीतला धाम, राम सरोवर इत्यादि।
History Of Chunar...!!
ReplyDeletethanks it is very use full info
ReplyDeleteWelcome bro, it's our responsibility.
ReplyDeleteNice yr
ReplyDeleteAwesome chunar